- कल की चिंता छोड़ आज की परिधि में रहना कैसे सीखे -
सर विलियम ऑस्लर जिन्होंने 1971 में विश्व विख्यात "जॉन्स हॉपकिंस स्कूल ऑफ़ मेडिसिन्स " का गठन किया ,इंग्लैंड के सम्राट ने उन्हें "नाइट "की उपाधि से विभूषित किया था। तथा उनकी मृत्यु के पश्चात् एक हज़ार चार सौ छियासठ पृष्ठों के दो वृहत ग्रंथों में उनकी जीवन कथा भी लिखी गयी थी।
यह ऐसे व्यक्ति हैं ,जो अपने शुरूआती दौर में बहुत परेशान रहा करते थे। लेकिन सन 1971 में उनके द्वारा पढ़े गए एक वाक्य ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।
वह कथा था "टॉमस कालाईल का जो सर विलियम ऑस्लर ने 1971 के बसंत में पढ़ा
"दूरस्थ तथा संदिग्ध कार्यो को छोड़ सन्निकट एवं निश्चित कार्यो को हाथ में लेना ही हमारा मुख्या ध्येय होना चाहिए। "
और सर विलियम ऑस्लर की ुउपलब्धि का सबसे बड़ा कारन था उनका "आज की परिधि में रहना "
दोस्तों ,सर विलियम ऑस्लर और मेरा आपसे आग्रह है की आप भी अपने शरीर रूपी यन्त्र पर नियंत्रण रखना सीखिए ,जिससे की आप आज की परिधि में रह सके ,और आपकी जीवन यात्रा सफल और सुरक्षित हो जाये।
"बीती ताहि बिसार दे "
क्योकि इस बीती की चिंता ने न जाने कितनी ही मूढात्माओ को नरक की रह पर धकेल दिया है। बीते हुए और आने वाले समय का भार एक साथ वर्तमान में ढोकर चलने वाला प्रचंड पराक्रमी भी लड़खड़ा जाता है ,आने वाले समय को भी ,बीते हुए समय की तरह भूल जाइये।
आपका "कल " आज है। ये कल नाम की कोई चीज है ही नहीं। मानव की मुक्ति वर्तमान से है। भविष्य की चिंता करने वाले अपनी शक्ति व्यर्थ में ही नष्ट करते रहते है। और न जाने कितनी बीमारियों से ग्रसित हो जाते है।
अतः आपसे मेरा आग्रह है की आगत और विगत को नजर अंदाज कर आज की परिधि में रहने के अभ्यस्त रहिये।
"आज की परिधि "में रहने का अभिप्राय यह भी नहीं की हम भविष्य के लिए कोई आयोजन ही न करे ,ऐसी बात नहीं है ,सर विलियम ऑस्लर ने "येल " संस्था के छात्रों को भाषण में बताया की
"भविष्य के लिए सही आयोजन करने का उपयुक्तं उपाय तो यही है की हम अपनी समग्र बुद्धि और अदम्य उत्साह के साथ आज का कार्य उत्तम रीति से करने में जुट जाये।
अपनी दिनचर्या को प्रभु की इस प्रार्थना के साथ आरम्भ करे की -
"हे प्रभु !केवल आज का भोजन जुटा दे। "
ध्यान दीजिये यह प्रार्थना केवल आज के भोजन के लिए ही है ,इसमें कल की बासी रोटी की शिकायत नहीं है।, न इसमें यह कहा गया है की " हे प्रभु !यदि सूखा पड़ गया तो आगामी पतझड़ में रोटी कहा से नसीब होगी या मेरा भरण पोषण कैसे होगा।
इस प्रार्थना में केवल आज की रोटी की ही याचना है ,इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। "आज की रोटी ही आपकी अपनी है। "
एक प्रसिद्द दार्शनिक ने कहा था की -
"कल की चिंता छोड़ दो ,कल अपनी सुध अपने आप ही लेगा ,आज की कठिनाइयां ही आज के लिए क्या कम है ?"
इसका आशय यह है की ,कल पर विचार अवश्य कीजिये ,उस पर मनन कीजिये ,योजनाए बनाइये ,तैयारियां कीजिये ,किन्तु उसके लिए चिंतित मत होइए।
अंत में एक प्रकाशक (न्यूयोर्क टाइम्स ) हेज साल्जबर्गर का एक प्रवचन जो उन्होंने चर्च में दिया था जो जीवन जीने की एक अलग कला सिखाता है वो प्रवचन इस प्रकार है -
"प्रगति का एक चरण ही पर्याप्त है "
सहारा दे ज्योतिर्मय
विचलित न कर
अधिक की कामना नहीं करता
"प्रगति का एक चरण ही पर्याप्त है। "
धन्यवाद्
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Reviewed by satendra singh
on
14 फ़रवरी
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