कभी कभी लाइफ में ऐसी SITUATIONS आ जाती है जहा पर हमको ये समझ नहीं आता की आखिर मुझे इसके आगे क्या करना चाहिए। और ये SITUATIONS आम है क्योकि ऐसी परिस्थितियाँ हर ह्यूमन की लाइफ में कभी न कभी जरूर आती है। आपको इन SITUATIONS से डरना नहीं है बल्कि खुलकर सामना करना है। हिंदी में एक पुरानी कहावत है "जो डर गया समझो वो मर गया। "
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डर ऐसी चीज होती है जो हमें मरने भी नहीं देती और खुलकर जीने भी नहीं देती ,जिसके अंदर डर है वो कभी अपनी लाइफ में SUCCESS अचीव नहीं कर सकता। लाइफ को देखे तो बहुत बड़ी भी है और बहुत छोटी भी है। जो खुलकर जीना चाहते है छोटी छोटी बातो में HAPPINESS पाना चाहते है उनके लिए लाइफ बहुत छोटी है और बहुत आसान भी लेकिन जो व्यक्ति डर-डर कर जीवन को जी रहा है उनके लिए ये लाइफ बहुत बड़ी है और बहुत कठिन भी क्योकि जिसके अंदर डर होगा उसको अपनी लाइफ का हर अगला सेकण्ड दोगुना कठिनाइयों से भरा हुआ लगेगा। और आप सिर्फ LIFE से STRRUGLE करते ही रह जाओगे लेकिन आप SUCCESS तो क्या अपने आप से भी HATE करने लग जाओगे।इसीलिए हमको लाइफ में कितनी भी PROBLEMS आ जाये हमको डरना नहीं है बल्कि हर आने वाली PROBLEMS से खुलकर सामना करना है। अब बात आती है की जिसके अंदर डर होगा वो कभी अपनी समस्याओ से खुलकर नहीं लड़ पायेगा तो फिर जिसके अंदर कोई डर है वो क्या करे वो अपने डर को कैसे समाप्त करें।
इसके लिए हमको अपने डर की जड़ को पता करना होगा ,आखिर जो हमारे अंदर डर समाया हुआ है वो किस कारन से समाया हुआ है। कोई न कोई तो वजह जरूर होगी हमारे डरने की बस कुछ नहीं करना हमको वही वजह पता करनी है की जिसके कारन से हम इतना ज्यादा डर रहे है। अगर आपने वो वजह पता कर ली तो यकीन मानिये आप SUCCESSFUL भी हो गए।
बहुत बार क्या होता है की हम अपने अंदर की आवाज़ को सुन तो पा रहे है लेकिन अपने अंदर की आवाज़ के थ्रो काम नहीं कर पा रहे होते है ,इसकी भी सबसे बड़ी वजह डर ही होती है हमें अपने अंदर से आवाज़ आ रही होती है की यदि मै ये करू तो 100% SUCCESSFUL हो जाउगा लेकिन फिर भी आप वही काम नहीं करते क्यों ?
क्योकि आप अंदर से बहुत डरे हुए होते हो और जो डरा हुआ होता है उसको कुछ भी करने को कह दो वो वही काम करने लग जायेगा। आपके अंदर का जो डर है वो आपके खुद की आवाज़ को सुनकर भी अनसुनी कर देता है।
- हम सभी कभी न कभी बच्चे हुआ करते थे ,और आपको शायद पता हो तो कभी न कभी आप भी बचपन में साइकिल चलाना सीखना चाहते होंगे और आपने सीख भी ली। क्या कोई ऐसा है जो साइकिल सीखते टाइम एक भी बार गिरा या लड़खड़ाया न हो। जी नहीं एक भी पर्सन ऐसा नहीं होगा जो बचपन में साइकिल सीखते टाइम गिरा न हो और उस टाइम जब आप गिरे ,क्या तब आपने अपने आप से ये कह दिया था की मर जाऊँगा लेकिन आज के बाद साइकिल नहीं छुऊंगा। जी नहीं ऐसा भी आपमें से किसी ने नहीं बोला था बल्कि जब आप गिरे थे तब आपके साइकिल सीखने की चाहत और ज्यादा बढ़ गयी थी। क्योकि उस टाइम आपको पता था और आपको अंदर से महसूस होता था की मै साइकिल चलाना जरूर सीख जाऊगा। फिर जब आप देख रहे होते थे की मेरे जो कुछ दोस्त है उन्हें साइकिल चलानी बहुत अच्छे से आती है और वो मेरे सामने भी चला रहे है तब उस समय क्या आपको ये लगता था की ये साइकिल सिर्फ मेरे दोस्तों के लिए बनी है मेरे लिए नहीं। या मै कभी साइकिल चलाना सीख ही नहीं सकता। जी नहीं आपने कभी ऐसा नहीं लगा बल्कि इसके विपरीत जब आपका कोई दोस्त आपके सामने साइकिल चलता हुआ आराम से निकलता था तब आपकी साइकिल सीखने की भूख हज़ारो गुना बढ़ जाती थी और आप फिर निकल जाते थे साइकिल उठाकर सीखने के लिए। उस टाइम आपको ये डर क्यों नहीं लगता था की यदि मैं फिर से गिर गया तो क्या होगा ? नहीं आपको कभी ऐसा नहीं लगता था। क्यों आखिर क्यों बचपन में हम एक साइकिल सीखने के लिए हज़ारो बार गिरने को तैयार हो जाते थे और आज पूरी लाइफ बनाने के लिए एक बार भी गिरने को तैयार नहीं?
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2- क्या फ़र्क़ है हमारे बचपन और हमारे आज में ?
जी फ़र्क़ ज्यादा बड़ा नहीं है कल भी हम कुछ न कुछ सीखना चाहते थे और आज भी सीखना चाहते है लेकिन कल हमारे पास सीखने के लिए कोई डर नहीं था और आज हमारे पास छोटी छोटी में भी डर है। एक ऐसा दर ऐसा अंधविश्वास कही न कही हमारे अंदर इस तरह समाया हुआ है आप नई चीजों को सीखना या करना ही नहीं चाहते। आप चाहते हो की इस दुनिया में जो लाखो करोडो लोग कर रहे है वही मै भी करता रहु। आप सोचते है की लाखो करोडो लोग यदि इस काम को कर रहे है तो मैं इनसे अलग कुछ क्यों करू यदि मैंने अलग किया और मै फेल हो गया तो क्या होगा मई तो कहीं का नहीं रहुगा। है बस यही सही है जो सब करेंगे वही मै करुँगा और क्यों करुगा क्योकि जब मै फेल होऊंगा तो मेरे साथ वो लोग भी फेल होंगे जो ये काम कर रहे थे और उस टाइम मुझे कोई BLAME करने वाला नहीं मिलेगा। बस पूरी लाइफ हम यही सोचते रह जाते है की यदि मैंने अपने अंदर की आवाज़ सुनि और mai फेल हो गया तो चार लोग मुझ पर उँगलियाँ उठाएंगे।
अरे न भाई ! तुझे ये तो सोचना ही नहीं की चार लोग क्या कहेगे क्योकि चार लोग हमेशा वही कहते है जो उन्हें समझ आ रहा होता है। और आपको दुनिया की समझ से कोई लेना देना नहीं है ये आपकी लाइफ है तो फैसले आपके होने चाहिए आपको कुछ नहीं बस अपने अंदर से सबसे बड़ा दर जो ये है की "यदि मैंने ऐसा किया तो क्या होगा या क्या हो जायेगा ? इस डर को हटाना है।
क्योकि भाई जब तक तेरे अंदर ये डर रहेगा तब तक तू साइकिल चलना नहीं सीख पायेगा क्योकि ये डर तुझे कभी साइकिल छूने ही नहीं देगा।
दोस्तों हम सभी की जिंदगी में कभी फैसले लेने के दिन जरूर आते है और उन फैसलों को लेने के लिए हम अपने अंदर की आवाज़ को सुन रहे या बाहर की आवाज़ को ये सबसे ज्यादा मायने रखता है। यदि हम अंदर की आवाज़ को सुन रहे है तो आपके अंदर कोई भी डर नहीं है और जब डर नहीं होगा तो हम उस काम को इतने उत्साह से कर पाएंगे हमें हर बड़ा से बड़ा काम भी आसान लगने लग जायेगा।
हमारे अंदर दो अवस्थाये होती है पहली जो अवस्था है वो उत्साह की है और दूसरी जो अवस्था है वो डर की होती है। और मजे की बात तो ये है ये दोनों अवस्थाये मानव शरीर में एक साथ निवास नहीं कर सकती ,कहने का मतलब की यदि हमारे अंदर डर होगा तो हमारे अंदर उत्साह नहीं होगा और यदि उत्साह होगा तो डर का नामोनिशान भी नहीं होगा। जो डर(FEAR) नाम का शब्द है वो लिखने और दिखने में आसान लगता है लेकिन भाईसाहब जिसके अंदर ये डर नाम का शब्द है उसकी जिंदगी तबाह करके ही छोड़ेगा।
विलिअम ऑस्लर ने भी कहा है की "डर" मनुष्य को एक दिन ऐसी अवस्था तक ले जाता है जहा इंसान की सोचने समझने की क्षमता ही ख़त्म हो जाती है। और जिसके अंदर सोचने समझने की क्षमता नहीं होती उसे पागल कहना ही उचित होगा।
तो जो भी डर है आपके अंदर उन्हें निकाल फेकिये अपने अंदर से और निडर इंसान बनने की कोशिश कीजिये क्योकि जिस दिन आप निडर बन जाओगे उस दिन आप 90% सक्सेसफुल भी बन जाओगे।
मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया हुआ है की डर का सबसे बड़ा कारन आपका प्रेजेंट में न जीना है।
आप पास्ट और फ्यूचर को सोच सोच कर दर असलियत में है ही नहीं ,आपके पास है तो सिर्फ और सिर्फ वर्तमान है आपको जो करना है जिसके लिए करना है वो सिर्फ वर्तमान है।
यदि आपको नहीं पता की आप प्रेजेंट में कैसे जी सकते है तो आप मेरी ये पोस्ट पढ़ सकते है जिसमे मैंने बताया हुआ है की प्रेजेंट का हमारी लाइफ महत्व है और पास्ट और फ्यूचर हमारे लिए कितने घातक है इस पोस्ट में मैंने ये भी शेयर किया हुआ है की आप अपने अंदर के डर को कैसे पकड़ सकते है और उस डर को कैसे दूर कर सकते है। नीचे दी हुई ये पोस्ट जरूर पढ़े मुझे आशा है की आपको भी अपने हर तरह के डर से निजात मिल जायेगी।
अंत में मै यही कहना चाहता हु की यदि आप एक निडर इंसान हो तो आप एक SUCCESSFUL इंसान भी हो।
डर हमारे अंदर के उत्साह को कभी पनपने नहीं देता और जब उत्साह नहीं होता तो जिंदगी boring लगने लग जाती है और अंदर ही अंदर हम घुटने लग जाते है।
सबसे पहले तो आप एक इंसान हो और इंसान कुछ भी कर सकता है ,इसीलिए डरना नहीं है बल्कि लड़ना है उस हर problems से जो आपके अंदर डर को पनपा रही है।
धन्यवाद
यदि आपको मेरे विचार पसंद आये हो और इस पोस्ट से आपकी कुछ हेल्प हो सके तो please मेरे इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे एंड comment karke bataye की आपको मेरे विचारो से किस तरह की हेल्प मिल सकी।
हम ऐसी ही नयी विचारधारा के साथ फिर हाज़िर होंगे जो आपके जीवन में बहुत मायने रखती होगीं तब तक के लिए बने रहिये हमारे साथ।
हमारी नई पोस्ट की इनफार्मेशन पाने के लिए आप हमारी वेबसाइट को subscribe भी कर सकते है ताकि कोई भी लाइफ का ऐसा पहलू समझने में दिक्कत न आये जिन्हे हमें समझना चाहिए।
तब तक के लिए धन्यवाद्।
दोस्तों हम सभी की जिंदगी में कभी फैसले लेने के दिन जरूर आते है और उन फैसलों को लेने के लिए हम अपने अंदर की आवाज़ को सुन रहे या बाहर की आवाज़ को ये सबसे ज्यादा मायने रखता है। यदि हम अंदर की आवाज़ को सुन रहे है तो आपके अंदर कोई भी डर नहीं है और जब डर नहीं होगा तो हम उस काम को इतने उत्साह से कर पाएंगे हमें हर बड़ा से बड़ा काम भी आसान लगने लग जायेगा।
हमारे अंदर दो अवस्थाये होती है पहली जो अवस्था है वो उत्साह की है और दूसरी जो अवस्था है वो डर की होती है। और मजे की बात तो ये है ये दोनों अवस्थाये मानव शरीर में एक साथ निवास नहीं कर सकती ,कहने का मतलब की यदि हमारे अंदर डर होगा तो हमारे अंदर उत्साह नहीं होगा और यदि उत्साह होगा तो डर का नामोनिशान भी नहीं होगा। जो डर(FEAR) नाम का शब्द है वो लिखने और दिखने में आसान लगता है लेकिन भाईसाहब जिसके अंदर ये डर नाम का शब्द है उसकी जिंदगी तबाह करके ही छोड़ेगा।
विलिअम ऑस्लर ने भी कहा है की "डर" मनुष्य को एक दिन ऐसी अवस्था तक ले जाता है जहा इंसान की सोचने समझने की क्षमता ही ख़त्म हो जाती है। और जिसके अंदर सोचने समझने की क्षमता नहीं होती उसे पागल कहना ही उचित होगा।
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तो जो भी डर है आपके अंदर उन्हें निकाल फेकिये अपने अंदर से और निडर इंसान बनने की कोशिश कीजिये क्योकि जिस दिन आप निडर बन जाओगे उस दिन आप 90% सक्सेसफुल भी बन जाओगे।
मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया हुआ है की डर का सबसे बड़ा कारन आपका प्रेजेंट में न जीना है।
आप पास्ट और फ्यूचर को सोच सोच कर दर असलियत में है ही नहीं ,आपके पास है तो सिर्फ और सिर्फ वर्तमान है आपको जो करना है जिसके लिए करना है वो सिर्फ वर्तमान है।
यदि आपको नहीं पता की आप प्रेजेंट में कैसे जी सकते है तो आप मेरी ये पोस्ट पढ़ सकते है जिसमे मैंने बताया हुआ है की प्रेजेंट का हमारी लाइफ महत्व है और पास्ट और फ्यूचर हमारे लिए कितने घातक है इस पोस्ट में मैंने ये भी शेयर किया हुआ है की आप अपने अंदर के डर को कैसे पकड़ सकते है और उस डर को कैसे दूर कर सकते है। नीचे दी हुई ये पोस्ट जरूर पढ़े मुझे आशा है की आपको भी अपने हर तरह के डर से निजात मिल जायेगी।
अंत में मै यही कहना चाहता हु की यदि आप एक निडर इंसान हो तो आप एक SUCCESSFUL इंसान भी हो।
डर हमारे अंदर के उत्साह को कभी पनपने नहीं देता और जब उत्साह नहीं होता तो जिंदगी boring लगने लग जाती है और अंदर ही अंदर हम घुटने लग जाते है।
सबसे पहले तो आप एक इंसान हो और इंसान कुछ भी कर सकता है ,इसीलिए डरना नहीं है बल्कि लड़ना है उस हर problems से जो आपके अंदर डर को पनपा रही है।
धन्यवाद
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"डर हमारी लाइफ का ऐसा पहलू है जो असलियत में इस दुनिया में है ही नहीं। बस डर एक भयानक विचारधारा होती है जिसे हम खुद पानी दे देकर बड़ा करते है ,इससे ज्यादा डर और कुछ नहीं "-SATENDRA SINGH (motivational author).
BE FEARLESS,BE SUCCESSFUL- HINDI MOTIVATIONAL THOUGHTS
Reviewed by satendra singh
on
07 फ़रवरी
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