"आत्मा का गति चक्र -कर्मो के चक्र में -"
दोस्तों आज हम इस विषय पर चर्चा करेंगे की आत्मा क्या है ये कहा से आती है और हमारे कर्मो का हमारी आत्मा से क्या लेना देना है।
दोस्तों अनादिकाल से ही कर्मो और हमारी आत्मा का बहुत गहरा रिश्ता रहा है ,क्योकिं कर्मयुक्त आत्मा हमेशा कर्मो को साथ लेकर चल रही है ,और हमारे कर्मो की वजह से ही बार बार जन्म लेती है। एक स्थान पर जन्म लेती है ,और वह का जीवन जीकर मरण को प्राप्त हो जाती है। और इस तरह जन्म मृत्यु का चक्र चलता रहता है ,
हकीकत में आत्मा का यह गति क्रम हमारे कर्मो के चक्र में पड़ने से चलता रहता है ,लेकिन जब भी हमारे विवेक से हमें आत्मिक ज्ञान हो जाता है ,और हमारे अंदर गहराई से उतर जाता है ,तो वह आत्मा समस्त बाहरी बंधनो से मुक्त होकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो जाती है ,लेकिन मूल स्थति में जब तक विवेक शक्ति जाग्रत नहीं होती है ,तब तक वह कर्म से शरीर और शरीर से कर्म बीज , फल और फल से पुनः फसल में घूमती रहती है। उसकी गति क्रम से चक्र में चलती रहती है।
बाजरे का एक बीज जमीन में बोया जाता है ,उससे एक पौधा पनपता है और उस पौधे पर बाजरे के कई तने लग जाते है ,तो इस तरह से बाजरे के एक दाने से बाजरे के कितने ही दाने पैदा हो जाते है ,और इन्ही दानों से पूरी एक फसल बोई जा सकती है। वैसे ही कर्म का एक छोटा सा बीज होता है ,लेकिन फलते फलते पूरी एक फसल का रूप ले लेता है। जब फसल पक्ति है तो उसमे कर्म के कई बीज होते है। बीज से फसल से और फसल के बीजो से फिर फसल इसी रूप में हमरे कर्मो के बंधन और उदय चलता रहता है। इस शरीर की और इस जीवन की दशा भी इसी रूप में चल रही है। इस निरंतर चलने वाली प्रक्रिया से मनुष्य हैरान हो रहा है और सोच रहा है की क्या किया जाये?
कभी कभी मानव सोचता है की मेरे पिछले जन्म के कर्मो का उदय हो रहा है तो कर्मो का बोझ काम हो
रहा है ,फिर से उदय हुआ तो बोझ और कम हुआ और इस तरह से तो सरे कर्मो का नाश हो जाना चाहिए। फिर नवीन कर्म क्यों बंधे है ?यह प्रश्न पैदा हो जाता है। लेकिन सही समाधान नहीं लेते है की पूर्व जन्म में बंधे हुए कर्मो का यदय आया और उसको आपने सफल बना लिया यानि की पाकी हुई फसल आपने ले ली तो स्वाभाविक तौर से अनेक कर्म आपसे बंध जायेगे और यदि फसल को पकने न देकर बीज की हालत में ही उसको काट लिया जाये तो नए कर्म पैदा होंगे और पुराने कर्म नष्ट हो जायेगे। जैसे एक किसान ने बाजरा बोया। उसके पास जितना बाजरा था सारा का सारा उसने फसल में बो दिया। अब उस बाजरे के बीज अंकुरित हुए तो पहले के बाजरे के बीज तो नष्ट हो ही गए और नए आये ही नहीं ,क्योकि फसल को उसने बीच में ही काट दिया। नतीजा क्या रहा की पहले के बीज तो उसने बोकर नष्ट कर ही दिए थे और साथ में बोये हुए बीज अंकुरित तो हुए लेकिन उस फसल को पकने न देकर बीच में ही काट दिया जिससे उसको नए बीज ही नहीं मिले। यदि वह फसल को बीच में नहीं काट पाता तो उसको कई गुना ज्यादा नए बीज मिल जाते।
वैसे ही हमारे कर्मो की दशा है। आपके मन और मष्तिष्क पर पूर्व जन्म के कर्मो का उदय आने पर असर होता है। उस असर में यदि आप बह गए और आपने सावधानी नहीं रखी तो पहले थोड़े कर्म बंधे हुए थे और अब नए कर्म अधिक बंधेगे।
कर्मो के इस चक्र में आत्मा का गति क्रम इसी रूप में दयनीय होता चला जाता है।
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धन्यवाद्
AATMA KA GATI KRAM -KARMO KE CHAKRA ME-motivational suvichar
Reviewed by satendra singh
on
31 अक्तूबर
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