श्री राम और अवधपुरी की कथा 👱
यह कथा पुरुषों में उत्तम श्रीं पुरुषोत्तम राम जी और उनकी जन्म स्थली अवधपुरी की है। अवध में सरयू नदी के किनारे एक नगर था जिसका नाम अयोध्या था। अयोध्या साधारण नगर नहीं बल्कि भव्यता अवं दर्शनीयता का प्रतीक था, अयोध्या का केवल एक राजमहल ही सुन्दर नहीं था बल्कि वहाँ की एक एक इमारत आलिशान थी ,आम लोगो के घर भी राजाओ की तरह थे ,सड़के चौड़ी थी ,सुन्दर बाग़ बगीचे ,और पानी से भरे लबालब सरोवर। हवा में हिलती फसले सरयू की लहरों के साथ खेलती थी। अयोध्या हर तरह से संपन्न अवं समृद्ध नगरी थी ,वहां पर रहने वाले सभी लोग सुखी अवं समृद्ध थे। मानो दुःख को अयोध्या का रास्ता ही मालूम नहीं था ,या मानो नगर में दुःख को प्रवेश करने की अनुमति ही नहीं थी। पूरा नगर विलक्षण एवं अदभुत।
उसे ऐसा होना ही था ,आखिर अयोध्या कोशल राज्य की राजधानी थी ,और राजा दशरथ वही रहते थे और राजा दशरथ के राज्य में दुःख का भला क्या काम ?राजा दशरथ कुशल योद्धा और न्यायप्रिय शाशक थे। राजा दशरथ महाराज अज के पुत्र एवं महाराज रघु के वंशज थे। और महाराज रघु के नाम पर ही राजा दशरथ के कुल का नाम रघुकुल पड़ा। रघुकुल की रीति नीति का प्रभाव हर जगह दिखाई देता था। सुख समृद्धि से लेकर बात व्यवहार तक वहां के हर व्यक्ति मर्यादाओ का पालन करते है। राजा दशरथ के राज्य में शांति और पवित्रता हर जगह थी। नगर में भी ,लोगो के मन में भी।
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राजा दशरथ यशश्वी थे ,उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी। राज सुख था कमी होने का प्रश्न ही नहीं था। लेकिन उन्हें एक दुःख था ,छोटा सा दुःख ,मन के एक कोने में छिपा हुआ। वह रह रह कर उभर आता था। उन्हें सालता रहता था की उनके कोई संतान नहीं थी। आयु ;लगतार बढ़ती जा रही थी ,उनकी तीन रानियाँ थी -कौशल्या ,सुमित्रा और कैकेयी। रानियों के मन में भी बस यही एक दुःख था। संतान की कमी। जीवन सूना सूना लगता था। राजा दशरथ से रानियों की बातचीत प्रायः इसी बात पर आकर रुक जाती थी। राजा दशरथ की चिंता बढ़ती जा रही थी।
बहुत सोच विचार कर महाराजा दशरथ ने इस सम्बन्ध में वशिष्ठ मुनि से बात की ,उन्हें पूरी बात विस्तार से बताई। रघुकुल के अगले उत्तराधिकारी के बारे में अपनी चिंता जताई। मुनि वशिष्ठ राजा दशरथ की चिंता समझते थे और इसीलिए उन्होंने राजा दशरथ को यज्ञ करने की सलाह दी। "पुत्रेष्टि यज्ञ " महर्षि ने कहा आप पुत्रेष्टि यज्ञ करे महाराज ! " आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी।
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यज्ञ महँ तपस्वी ऋष्यश्रंग की देख रेख में हुआ। पूरा नगर उसकी तैयारी ,में लग गया। यज्ञशाला सरयू नदी के किनारे बनायीं गयी। यज्ञ में अनेक राजाओ को निमंत्रित किया गया। तमाम ऋषि मुनि पधारे। शंख की ध्वनि एवं मंत्रो के उच्चाहृण के बीच सभी ने आहूतियाँ डाली। अंतिम आहुति राजा दशरथ की थी।
यज्ञ पूरा हुआ ,अग्नि के देवता ने महाराज दशरथ को आर्शीवाद दिआ। कुछ समय बाद राजा दशरथ की इच्छा पूरी हुई। तीनो रानियाँ पुत्रवती हुई। महारानी कौशल्या ने पुरुषो में उत्तम श्री राम प्रभु को जन्म दिआ। चैत्र माह की नवमी के दिन। रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए। लक्ष्मण और शत्रुघ्न। और रानी कैकेयी के पुत्र का नाम भारत रखा गया।
राजमहल में ख़ुशी छा गयी ,नगर में बधाइयाँ बजने लगी। मंगलगीत गाये गये। हर ओर ख़ुशी। उत्सव जैसा दृश्य। राजा दशरथ प्रसन्न थे ,उनकी मनोकामना पूरी हुई। .प्रजा प्रसन्न थी की राजा दशरथ की चिंता दूर हुई। नगर में बड़ा समारोह आयोजित किया गया धूमधाम से। समारोह में दूर दूर से लोग आये। राज सबको बराबर सम्मान दिआ। उन्हें कपडे ,अनाज और धन देकर विदा किया।
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श्री राम चंद्र की जय।
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अवधपुरी में श्री राम (रामनवमी की शुभकामनाएं) RAMNAVMI AND SHRI RAM'S STORY-www.ourinspiration.info
Reviewed by satendra singh
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01 अप्रैल
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